देश समाचार (सोनभद्र)
पुण्यतिथि पर विशेष-
पदमश्री डॉक्टर हनीफ मोहम्मद खान सोनभद्र की शान।
-2019 में मिला पद्मश्री पुरस्कार।
-हिंदू मुस्लिम धर्म ग्रंथों का किया आजीवन अध्ययन, लेखन, वाचन।
-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया सोनभद्र का नाम रोशन।
सोनभद्र-हिंदू- मुस्लिम एकता की धरती सोनभद्र जनपद का दुद्धी शहर जहां मुस्लिम भाई रामलीला में राम के पात्र की भूमिका अदा करते हो, भजन कीर्तन करते हो, वही हिंदू भाई ताजिया को कंथा देकर हिंदू- मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करते हो ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों, देशभक्तों की जन्मभूमि- कर्मभूमि में हिंदू-मुस्लिम एकता की जड़ें काफी गहराई से जमी हुई है।
इतिहासकार, विंध्य संस्कृति शोध समिति उत्तर प्रदेश ट्रस्ट के निदेशक दीपक कुमार केसरवानी के अनुसार”सोनभद्र जनपद के दुद्वी नगर जन्मे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्कृत साहित्य के प्रकांड विद्वान् डॉक्टर हनीफ मोहम्मद शास्त्री के ताऊ सुखन अली एवं पिता जुगनू अली को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अंग्रेजों द्वारा इनको सपरिवार बेघर कर दुद्धी क्षेत्र से निर्वासित कर दिया गया था, किसी तरीके से इनके परिवार के लोग अंग्रेजों से लुक छुप कर गरीबी में जीवन जीते रहे।
दुद्धी नगर के
जुगनू चौक पर
21 सितंबर 1951 ईस्वी को सेनानी जुगनू अली, सुन्नत अदा के घर जन्मे डॉक्टर हनीफ मोहम्मद शास्त्री द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदू-मुस्लिम ग्रंथों पर किए गए शोध कार्य कर धार्मिक एकता का मिसाल कायम किया,भारत के राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद द्वारा
पदमश्री पुरस्कार से पुरस्कृत सोनभद्र के प्रथम विद्वान,स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुखन अली के वंशज,भारतीयता से सम्पन्न चारों धाम की यात्रा तथा हज करने वाले एकमात्र मुस्लिम विद्वान डॉक्टर हनीफ मोहम्मद शास्त्री ने श्रीमद्भागवत गीता का नियमित अध्ययन का आधार बनाया।
इनका बचपन बड़े गरीबी में बीता, लेकिन गीता में बताए गए कर्म के आधार पर वह जीवन भर कार्य करते रहे।
ये अपने परिवार के पहले 5 वीं कक्षा पास व्यक्ति थे।
हाई स्कूल में असफलता पर उनके शिक्षक पंडित रतनलाल शास्त्री ने उनसे भगवद गीता के एक अध्याय का अध्ययन करने का सुझाव दिया। और समझाया कि
हर दिन जो भगवान के परोपकार को सुनिश्चित करेगा और इस तरह उसकी सभी परेशानियों का अंत कर देगा। भगवद् गीता के इस संपर्क ने उनमें पाठ के रहस्यों के बारे में जिज्ञासा की भावना और उन्हें दूसरों के साथ साझा करने की इच्छा पैदा की। इस अच्छाई ने उन्हें संस्कृत में उत्कृष्टता प्राप्त करने का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया।
स्नातक तक की शिक्षा राजकीय महाविद्यालय दुद्धी से प्राप्त किया और इनके शिक्षा- दीक्षा में इनके मित्र और दुद्धी क्षेत्र के विधायक एवं सांसद रामप्यारे पनिका का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
संपूर्णानंद संस्कृत महाविद्यालय वाराणसी से संस्कृत में परास्नातक, कामेश्वर सिंह दरभंगा (बिहार) संस्कृत विश्वविद्यालय से पुराण में आचार्य और तुलनात्मक धर्मशास्त्र में विद्यावारिधि पी एच डी- की उपाधि प्राप्त किया।
26 नवम्बर सन् 1982 में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली में अनुदेशक,
30 सितम्बर 2016 को सहायक आचार्य पद से अवकाश प्राप्त किया। 24 फरवरी1994 को राष्ट्रपति माननीय डॉ शंकर दयाल शर्मा शास्त्री की उपाधि से विभूषित किया, सन 2003 में वेदांग सम्मान पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ मुरली मनोहर जोशी द्वारा प्रदान किया गया, सन
2009 में राष्ट्रीय साम्प्रदायिक सद्भाव सम्मान भारत के प्रधानमन्त्री डॉ मनमोहन सिंह और उपराष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया गया, 2011 में राष्ट्रीय प्रतिष्ठा सम्मान कांची कामकोटि पीठाधीश शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी के द्वारा प्रदान किया गया,16 मार्च 2019 क़ो गीता और कुरान का संस्कृत में अनुवाद के लिए भारत के राष्ट्रपति माननीय रामनाथ कोविंद द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।
डॉक्टर हनीफ मोहम्मद शास्त्री ने अपने जीवन काल में वेद और कुरआन से महामंत्र गायत्री ओर सुरह फातिहा, मोहन गीता, श्रीमद्भगवद् गीता और कुरान में सामंजस्य, श्रीमद्भगवद् गीता और इस्लाम, महासागर संगम (वेद, उपनिषद् और कुरआन का समान अध्ययन) आदि ग्रंथों का सृजन किया।
कुरान, वेद, भगवद्गीता, उपनिषद, गीता, पुराण में समानता पर लेखन देश- विदेश में प्रवचन करते रहे।
26 जनवरी 2020 दिन रविवार को दिल्ली स्थित आवास पर 65 वर्ष की अवस्था में इनका इंतकाल हो गया।
पदम श्री डॉक्टर हनीफ मोहम्मद शास्त्री का हिंदू मुस्लिम साहित्य पर किया गया शोध कार्य, लेखन, वाचन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है।
जीवन के अंतिम दिनों में लंबी बीमारी के बावजूद अति उत्साह के साथ ग्रंथ लेखन का कार्य किया।