December 7, 2024 |

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जश्ने अल्फ़ाज़ और सबरस अकादमी के संयुक्त तत्त्वावधान में “यादे मीना नक़वी: सम्मान समारोह”, दुष्यंत कुमार द्वारा रचित नाटक का मंचन एवं सुखन कुंज अखिल भारतीय मुशायरा आयोजित “

जश्ने अल्फ़ाज़ और सबरस अकादमी के संयुक्त तत्त्वावधान में “यादे मीना नक़वी: सम्मान समारोह”, दुष्यंत कुमार द्वारा रचित नाटक का मंचन एवं सुखन कुंज अखिल भारतीय मुशायरा आयोजित ”

प्रसिद्ध शायर एवं चित्रकार साजिद प्रेमी को डॉ. मीना नक़वी सम्मान से सम्मानित किया गया।

देश समाचार ब्यूरो)जश्ने अल्फ़ाज़ और सबरस अकादमी के संयुक्त तत्त्वावधान में “यादे मीना नक़वी”, दुष्यंत कुमार द्वारा रचित नाटक का मंचन एवं सुखन कुंज अखिल भारतीय मुशायरा 15 जनवरी 2023 को दोपहर 2 बजे से कुक्कुट भवन, भोपाल में किया गया।

सबरस अकादमी की संरक्षक डॉ नुसरत मेहदी ने प्रथम सत्र के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इस सत्र में सबरस अकादमी द्वारा डॉ मीना नक़वी सम्मान से प्रसिद्ध साहित्यकार एवं चित्रकार साजिद प्रेमी को सम्मानित किया जा रहा है। उन्होंने आगे बताया कि इस अवसर पर डॉ. मीना नक़वी को याद करते हुए उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा की जा रहीं है।

कार्यक्रम तीन सत्रों पर आधारित था। प्रथम सत्र में दोपहर 2 बजे सबरस अकादमी और जश्न ए अल्फाज़ के संयोजक मंडल सैयद आबिद हुसैन, सुहैल उमर, शिवाजी एवं प्रशस्त विशाल द्वारा सभी अतिथियों का डॉ. मीना नक़वी के काव्य संग्रह दे कर स्वागत किया गया। इसके पश्चात साजिद प्रेमी का सम्मान किया गया।साजिद प्रेमी के सम्मान के बाद डॉ. मीना नकवी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व ज़िया फ़ारूक़ी एवं डॉ नुसरत मेहदी का वक्तव्य हुआ। इस अवसर पर क़ाज़ी मलिक नवेद ने काव्यांजलि प्रस्तुत की। इस सत्र का संचालन रिज़वान उद्दीन फारूकी द्वारा किया गया। दूसरे सत्र में कलाकारों द्वारा सुप्रसिद्ध शायर दुष्यंत कुमार द्वारा रचित काव्य नाटिका एक कंठ विषपायी का नाट्य मंचन किया गया। अंतिम सत्र में “सुख़न कुंज : अखिल भारतीय मुशायरा” आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता सुप्रसिद्ध शायर ज़फ़र सहबाई द्वारा की गई एवं संचालन आशु झा द्वारा किया गया। जिन शायरों ने कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर इस प्रकार हैं।

ज़फ़र सहबाई
जो पढ़ा है उसे जीना ही नहीं मुमकिन
ज़िन्दगी को मैं किताबों से अलग रखता हूँ

मदन मोहन मिश्रा दानिश,
बदल सकती है रुख़ तस्वीर अपना
कुछ इतने ग़ौर से देखा न जाए

डॉ. नुसरत मेहदी,
मैं कहाँ अपनी किसी सोच के इज़हार में थी
मैं तो हर दौर में सौंपे हुए किरदार में थी

आशू मिश्रा
सूखते पेड़ से पंछी का जुदा हो जाना
ख़ुद परस्ती नहीं एहसान फ़रामोशी है।

कुलदीप कुमार
दरख़्त करते नहीं इसलिए उम्मीदे वफ़ा
वो जानते हैं परिंदों के पर निकलते हैं

आशू झा
कमी है क़ैस की फ़रहाद की इज़ाफ़त है
ख़लल है इश्क़ में जो भी फ़क़त पहाड़ का है

सुहैल उमर
एक दरिया को तकब्बुर है रवानी पर बहुत
और समंदर खामशी से कितने दरिया पी गया

कार्यक्रम के अंत में जश्न ए अल्फाज़ के संयोजक मंडल एवं सबरस अकादमी की ओर से रिज़वान उद्दीन फारूकी, सैयद आबिद हुसैन सुहैल उमर ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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